दिल्ली सरकार को दिया चार सप्ताह का समय,15 जनवरी को होगी अगली सुनवाई
प्रदेश भर में कुल 19 हजार 600 सौ गुरिल्ला
उत्तरकाशी/ देहरादून। लंबे समय से उत्तराखण्ड सहित अन्य राज्यों में नौकरी, पेंशन और आश्रितों को लाभ की मांग को लेकर आंदोलित एसएसबी प्रशिक्षित गुरिल्लाओं संगठन की मांग को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी जायज ठहराया है और सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है 15 जनवरी को इस पर फैसला होगा ।
अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे एसएसबी गुरिल्लाओं संगठन को अब न्याय की उम्मीद जग गई है उत्तराखंड हाइकोर्ट के साथ ही बीते 5 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी एसएसबी गुरिल्लाओं संगठन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है ।
आपको बता दे कि गुरिल्ला संगठन हर राज्यों में पिछले 18 साल से आंदोलनरत है। अब कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया तो गुरिल्लाओ ने मिठाई बांटकर खुशी जाहिर की। अकेले उत्तराखण्ड प्रदेश के तकरीबन 19 हजार 600 सौ गुरिल्लाओं को लाभ मिलने की उम्मीद जगी है।
गुरिल्ला संगठन अपनी तीन सूत्रीय मांगों को आंदोलन चला रहे है जिसमें एसएसबी स्वयंसेवकों को नौकरी, पेंशन और आश्रितों को सेवानिवृत्ति का लाभ देना है ।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी एसएसबी के स्वंयसेवकों तथा मृतक स्वयंसेवकों की विधवाओं को मणिपुर राज्य की तरह नौकरी, पेंशन और सेवानिवृत्ति के लाभ तीन माह के भीतर देने के आदेश दिए हैं। वहीं बीते 5 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी गुरिल्ला संगठन की मांग को न्याय संगत बताते हुए सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है । कोर्ट के फैसले से अब गुरिल्ला संगठन की न्याय की आश जगी है । संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलबीर ठाकुर सचिव अनवर अली ने अपने अधीनस्थ राज्यों और जनपदों के अध्यक्षों से यह जानकारी साझा की है । उन्होंने कहा कि पहले भी न्यायालयों से फैसले हुए हैं, पर सरकार ने नहीं माना एक बार और उम्मीद जगी है कि सरकार दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले का सम्मान करेगी और उन्हें उनका अधिकार देगी। उत्तरकाशी में संगठन के जिलाध्यक्ष बिक्रम सिंह रावत , सचिव सुंदर लाल शाह ,प्रदेश उपाध्यक्ष चमन लाल शाह ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की ।
कौन है गुरिल्ला संगठन ….
1962 में चीन युद्ध के दौरान आई कमजोरियों से सबक लेते हुए युद्ध समाप्त होने के बाद 1963 में अस्तित्व में आए सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का काम प्राथमिक कार्य रॉ के लिए सशस्त्र सहायता प्रदान करना था सीमा से लगे राज्य के लोगों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देता था। इस बेसिक कोर्स से चुने गए युवक-युवतियों को 45 दिन की कठिन गुरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती थी। हर बार के प्रशिक्षण में गुरिल्लों को प्रशिक्षण अवधि का एक निश्चित मानदेय दिया जाता था। छापामारी युद्ध के लिए हिमाचल के सराहन और उत्तराखंड के ग्वालदम में प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया। युवतियों को उत्तराखंड के पौड़ी में प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके बाद इन्हें एक निश्चित मानदेय पर एसएसबी के हमराही वालंटियर के रूप में तैनाती दी जाती थी।
वर्ष 2001 में केंद्र सरकार ने एसएसबी को सशस्त्र बल में शामिल कर सशस्त्र सीमा बल नाम दे दिया और गुरिल्लों की भूमिका समाप्त कर दी। तभी से राज्य में गुरिल्ला आंदोलनरत हैं। लंबे आंदोलन के बाद पहली बार 18 सालों से आंदोलित एसएसबी के गुरिल्लों के सत्यापन का आदेश शासन स्तर से जारी हुआ है। प्रदेश भर में कुल 19 हजार 600 सौ गुरिल्ला हैं। गुरिल्ला संगठन सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब सरकार से मणिपुर राज्य की तरह गुरिल्लों को सरकारी सेवाओं में वरीयता, पेंशन और आश्रितों को लाभ की मांग कर रहा।


