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उत्तरकाशी में छठा ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ का जोरदार स्वागत।।
अस्कोट-आराकोट अभियान’ अभियान की प्रमुख थीम ‘स्रोत से संगम’ ।।
अस्कोट-आराकोट अभियान 2024: हिमालय की जड़ों से जोड़ती एक पदयात्रा
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 29, जून। उत्तरकाशी पहुंची वर्ष 2024 में छठा ‘अस्कोट-आराकोट यात्रा का जोरदार स्वागत किया गया है।
शनिवार को जिला प्रेक्षागृह में पहाड़’ टीम उत्तरकाशी ने यात्रा में शामिल लोगों का फूल माला से स्वागत किया गया है। इस दौरान स्वागत गीत-कविता, यात्रा के अनुभव एवं संवाद सहित लघु फिल्म और स्लाइड शो दिखाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि पहली अस्कोट-आराकोट यात्रा 25 मई 1974 को पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चमोली, टिहरी, देहरादून और उत्तरकाशी जिलों के करीब 350 गांवों से होकर गुजरी
पहली यात्रा की प्रेरणा से ‘पहाड़’ जैसे हिमालयी सरोकारों वाली संस्था का जन्म हुआ, जिसने कालांतर में ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ को प्रत्येक दस वर्ष के अन्तराल में दोहराने का निर्णय लिया। इस तरह 1984, 1994, 2004, और 2014 में क्रमशः दूसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवाँ ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ सम्पन्न हुआ। इन अभियानों का मकसद मूल यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले गांवों को 10 वर्ष के अंतराल में देखना और इन दौरान हो रहे बदलावों को समझने का प्रयास करना था। हालांकि दूसरे ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ से यात्रा का शुरुआती बिन्दु अस्कोट के बजाय पांगू कर दिया गया, लेकिन नाम में कोई बदलाव नहीं हुआ। अलबत्ता यात्रामार्ग की लंबाई बढ़कर 1150 किमी हो गयी।
हर बार ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ में कुछ नए युवा और उत्साही जुटते और बेहद विनम्रता से की जाने वाली 45 दिन की इस कठिन हिमालय यात्रा से अपने जीवन के लिए कुछ मूल्यवान सबक़ लेकर लौटते। सामाजिक बदलाव के लिहाज से एक दशक कम समय नहीं होता है। इतने वर्षों के बीच उत्तराखंड राज्य का निर्माण हुआ और नाजुक हिमालय के इस मध्य भाग ने इंसानी छेड़छाड़ के कारण आपदाओं सैकड़ों विभीषिकाओं का सामना किया। दूर-दराज गांवों तक पहुंची सड़कों ने पहुंचना थोड़ा आसान जरूर किया, मगर सड़कों के साथ पहुंचने वाली संस्कृति ग्रामीण जीवन की निश्छलता को लील गई। रोजगार, स्वास्थ और शिक्षा की बदहाली ने पलायन के रूप में उत्तराखण्ड को एक बड़ी बीमारी दी है। अभियान के मार्ग में पड़ने वाले गाँव भी इससे अछूते नहीं हैं। यह यात्रा बदलाव की इस आंधी के बरक्स विकास के जारी मॉडल को समझने का भी मौक़ा देती है।
इस वर्ष 2024 में छठा ‘अस्कोट-आराकोट अभियान’ आगामी 25 मई 2024 से शुरू हुआ। अभियान का यह पचासवां यानी स्वर्ण जयंती साल भी है। इस बार अभियान की प्रमुख थीम ‘स्रोत से संगम’ रखी गई है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई से समझा जा सके और उनकी सेहत पर पड़ रहे दबावों को सामने लाया जा सके।
अभियान में उत्तराखण्ड की अनेक सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता; विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी और प्राध्यापक, उत्तराखंड-हिमाचल के इंटर कालेजों, हाईस्कूलों के विद्यार्थी और शिक्षक, पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा देश-विदेश के हिमालय प्रेमी भी शिरकत करेंगे। मुख्य यात्रा के अलावा इस बार अनेक टोलियाँ दूसरे मार्गों से अपनी नदी अध्ययन यात्राएं आयोजित करेंगी। स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी अपने-अपने इलाके की नदियों की सेहत का जायजा लेने के लिए छोटी अध्ययन यात्राएं निकालेंगे और अपने परिवेश की वास्तविक समस्याओं पर चिंतन करने की शुरुआत कर रहे हैं।
इस दौरान याता के मुख्या सुप्रसिद्ध इतिहासकार, पर्यावरणविद् एवं पद्मश्री डॉ. शेखर सहित दर्जनों सहयोगी,गिरजा पांडेय, चंदन डांगी, कवि हर्ष काफर
सुश्री चंद्रप्रभा ऐतवाल, उत्तरकाशी जिला के यात्रा प्रभारी सुरक्षा रावत, अजय पुरी, दिनेश भट्ट, दीपेंद्र पंवार, प्रताप सिंह बिष्ट, सुमन रावत, तनूजा , मखन सिंह, शैलेंद्र नौटियाल
डाक्टर शंभू प्रसाद नौटियाल आदि दर्जनों लोग मौजूद रहे हैं।,
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हिमालय की जड़ों को समझने की पांगू- अस्कोट-आराकोट की यात्रा ।।
उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के पूर्वी कोने पर नेपाल सीमा पर स्थित पांगू, जिला पिथौरागढ़ के शंश्यै-गवला मंदिर प्रांगण से पांगू-अस्कोट-आराकोट की छठी यात्रा अभियान का शुभारंभ 25 मई को ‘पहाड़’ के संस्थापक व प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक पद्मश्री डॉ.शेखर पाठक के नेतृत्व, उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय के प्रोफेसर गिरजा पांडे के संचालन तथा सुविख्यात पर्यावरण विद व सर्वोदय गांधीवादी पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट, प्रोफेसर प्रकाश उपाध्याय (नेहरू मेमोरियल), ललित पंत (संस्थापक पहाड़), राजीव लोचन साह (संपादक नैनीताल समाचार) अखिल रमेश (कर्नाटक), भूपेन सिंह (हल्द्वानी), गजेन्द्र रौतेला (अगस्त मुनि), महेश पुनेठा (पिथौरागढ़), अल्का कौशिक, प्रोफेसर उमा पंत, आशुतोष उपाध्याय, चन्दन डांगी आदि के सानिध्य में हो रही है।
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