रक्षाबंधन 19 अगस्त को, उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉ घिल्डियाल ने बताया शास्त्र सम्मत मनाएं।।
चिरंजीव सेमवाल
देहरादून । हिंदू धर्म में रक्षाबंधन त्योहार का विशेष महत्व है। वैदिक पंचांग के अनुसार यह त्योहार हर साल सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई -बहन के प्रेम के प्रतिक है। साथ ही इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनसे रक्षा का वचन मांगती है। वहीं भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और जीवनभर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं शिक्षा एवं संस्कृत शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक डॉ चंडी प्रसाद घिल्डियाल “दैवज्ञ” बताते हैं ,कि इस साल यह त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाना ही शास्त्र सम्मत है, क्योंकि इस साल सावन पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त को सुबह 3 बजकर 3 मिनट पर शुरू हो जाएगी और इसका अंत 19 अगस्त की रात 11 बजकर 56 मिनट पर होगा। ऐसे में शास्त्र के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त को ही मनाया जाएगा।
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भद्राकाल में नहीं बांधी जाती राखी : आचार्य दैवज्ञ
अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित आचार्य दैवज्ञ बताते हैं, कि ज्योतिष में भद्राकाल का समय शुभ नहीं माना जाता है। साथ ही इस समय कोई शुुभ कार्य करने की मनाही होती है। विशेष रूप से रक्षाबंधन के लिए भद्रा इसलिए भी महत्व रखती है, क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्राकाल में राखी बांधने से भाई बहन के रिश्तों में खटास आ जाती है। इसलिए भाई बहन को राखी शुभ मुहूर्त में ही बांधनी चाहिए।
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भद्राकाल समय का शास्त्रीय निर्णय
ज्योतिष शास्त्र के निर्णय सिंधु कहे जाने वाले आचार्य दैवज्ञ पूर्ण विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि भद्राकाल हमेशा 30 घाटी का होता है, उसमें से 18 तारीख को 7 घटी 58 पल भद्रा के बीच चुके थे, शेष 22 घटी 19 तारीख को होने से इस दिन पाताल लोक की भद्रा है ,पांच घटी तक भद्रा का मुख अर्थात 7:30 तक इस प्रकार 12 15 तक किसी प्रकार रक्षाबंधन नहीं हो सकता है,*और ठीक 12:15 से 12:30 तक भद्रा का पुच्छ काल रहेगा तथा अभिजीत मुहूर्त भी रहेगा, इस समय रक्षाबंधन हो सकता है। परंतु यदि समय हो तो 1:30 बजे से और शाम को 7:00 बजे तक ही रक्षाबंधन के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त है,क्योंकि 7:00 बजे बाद फिर पंचक प्रारंभ हो रहे हैं उसमें भी रक्षाबंधन नहीं हो सकता है।
*रक्षाबंधन का महत्व*
रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन को समर्पित है। साथ ही यह पर्व भाई बहन के मजबूत संबंधों को दर्शाता है। वहीं शास्त्रों में रक्षाबंधन को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, परंतु सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन पुराणों में वर्णित कहानी के अनुसार जब *पांडवों के राष्ट्रीय यज्ञ में भरे दरबार में भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का सुदर्शन चक्र से वध किया था, तो भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तो द्रौपदी ने उनकी उंगली से खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था। इसपर भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया था। तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।*
*राखी बांधने का मंत्र*
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:”।।