यहां खिलौने नहीं…जहरीले सांपों के साथ खेलते सरनौल के पांडव पशवा , हैरान कर देगा ये दृश्य
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी। जनपद के सीमांत गांव सरनौल के ग्राम देव डोलियों एवं पांडव पशवा के साथ सरूताल बुग्याल से लौट कर आये है। में शनिवार को सरनौल गांव की थातमाता में लगभग पौने पांच फिट का सांप पांडव पशवाओ ने देखा।
शनिवार को सरनौल गांव के पांडव पशवा ने जिंदा सांप को पकड़ कर उसके साथ ढोल की थाप पर थिरकते नजर आये बाद में दुध पिलाकर जंगल में सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया है।
पांडव पशवा सांप को पकड़ कर खिलौनों जैसे सांपों से खेलते नजर आए। हालांकि, सांप को देखकर या उसका नाम सुनकर ज्यादातर लोग डर जाते हैं या बेचैनी महसूस करते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि सांपों को पकड़ने और उनसे खेलने की इस परंपरा को चमत्कारी कृत्य माना जाता है या कुछ और। हालांकि, पांडव पशवों की जिंदे सांपों के साथ नृत्य करने के पीछे की सच्चाई लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है यह सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है।
उत्तरकाशी जनपद के विकास खंड नौगांव के सूदूरवर्ती सरनौल गांव में जब भी गांव में सांप दिखाई देता है तो सांपों से खेलने का मेला लगता है। यहां पारंपरिक खिलौनों की जगह श्रद्धालु सांपों से खेलते नजर आते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कैसे भय पर आस्था की जीत होती है, क्योंकि लोग दर्जनों बार इस अनोखे तरीके से सांपों के साथ अवतरित होकर नृत्य करके दुध पिलवाते है।
::::::::::::::::क्या कहते हैं स्थानीय::::::::
मां रेणुका मंदिर ट्रस्ट सरनौल के अध्यक्ष विजेंद्र सिंह राणा ने बताया कि प्रकृति के सभी जीवों की उपयोगिता और उनके कार्य क्षेत्र को निर्धारित करने वाली परंपरा आज भी कायम है। पहाड़ों में नागपंचमी में सर्प पूजा के पारंपरिक विधान से जीवन चक्र को बनाए रखने का भी वैज्ञानिक आधार मजबूत होता है। सांप के साथ करतब दिखाने वाले पशवा बताते हैं कि यह सब रेणुका माता एवं पांडव के कृपा से होता है। उन्होंने कहा कि यहां सब माता का वरदान है।