डांडा देवराणा मेले में झलकी आस्था और संस्कृति की झलक , हजारों से श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
“डांडा देवराणा जातिर तू काई न आई पूफिए”
चिरंजीव सेमवाल•
उत्तरकाशी : ठेठ रवांईघाटी मुंगसंती पट्टी के 65 गांवों के लोग डांडा देवराणा मेला में एक साथ तांदी, झुमेलो और रासौं नृत्य में गाजे-बाजों के साथ नाचते लोग रंवाई की अनूठी मेला परंपराओं के संरक्षक हैं। डांडा देवराणा की जातर में शामिल होने वालों को भाग्यशाली माना जाता है। घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित रुद्रेश्वर देवता मंदिर से लोग मनौती मांगते हैं। मान्यता है कि यहां से कोई खाली वापस नहीं लौटता। परंपरा के अनुसार, दोपहर बाद तीया थान के माली संकीत थपलियाल ने मंदिर के ऊपर बने लकड़ी के शेर की पीठ पर चढ़ कर मूर्ती को दूध का स्नान करवाने के बाद श्रद्धालुओं को दर्शन करवाए। जिसके बाद उन्होंने सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया।
यूं तो रंवाई खूबसूरती के लिए जाना जाता है लेकिन रंवाई में मुंगरसंती पट्टी की बात ही कुछ और है। यहां सड़क से पांच किमी. की चढ़ाई पर भगवान रुद्रेश्वर महाराज का मंदिर है। हर साल रुद्रेश्वर की के देवदार के जंगलों में में देवराणा का मेला आयोजित किया। इस मेले में एक चर्चित गाना लगा है “डांडा देवराणा जातिर तू काई न आई पूफिए'”
गौरतलब है कि नौगांव, उत्तरकाशी के डांडा देवराणा मेले में इस बार भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। यह मेला रवांई घाटी का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक मेला है, जिसे स्थानीय लोग ‘डांडा की जातर’ भी कहते हैं। मेले में रवांई, जौनपुर और जौनसार क्षेत्र के हजारों श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने देव दर्शन कर मन्नतें मांगी।
मेले में लोक नृत्य, हुड़की वादकों द्वारा रुद्रेश्वर की गाथा का गायन और अन्य पारंपरिक कार्यक्रम भी हुए।
यह मेला रवांई घाटी की संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और हर साल बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है
हाल में ही रूद्रेश्वर महादेव डांडा देवराणा मेले को उत्तराखंड सरकार ने राजकीय मेला भी घोषित किया है। डांडा देवराणा मेला अपनी पौराणिक संस्कृति और मान्यताओं को संजोए हुए है।