एक दुल्हन, दो दूल्हे – गिरिपार की परंपरा फिर बनी मिसाल

By sarutalsandesh.com Jul 20, 2025

हिमाचल के शिलाई में युवती ने दो सगे भाइयों से रचाया विवाह

हिमाचल के सिरमौर जनपद में हुआ विवाह , दोनों भाई में से एक सरकारी सेवा में एक विदेश रहता।।

चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी/ सिरमौर:
उत्तराखंड- हिमाचल सीमा सटे मौजूद सिरमौर जिले के सिलाई क्षेत्र में हुई एक शादी इन दिनों सोशल मडिया  पर खासी चर्चा में है। जिसमें दो सगे भाइयों ने एक ही लड़की से शादी की है। विवाह भी पूरी परंपरा और धूमधाम से हुआ है। हाँ, ये कोई अफवाह नहीं 12 से 14 जुलाई 2025 के बीच ये शादी पूरे पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई है।

हिमाचल प्रदेश के में गंधर्व विवाह” की परंपरा कुल्लू व सिरमौर की लगघाटी व अन्य कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी देखी जाती।
यह परंपरा महाभारत के समय की बताई जा रही है, जैसा कि द्रौपदी ने पांच पांडवों से विवाह किया था, उसी तर्ज पर यह विवाह हुआ।
इसे बहुपत्नी प्रथा, जिसे बहुविवाह भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रथा है जिसमें एक व्यक्ति एक से अधिक जीवनसाथी रखता है। जब एक पुरुष एक से अधिक महिलाओं से शादी करता है, तो इसे बहुपत्नीत्व कहा जाता है। यह प्रथा दुनिया के कई हिस्सों में पाई जाती है, हालांकि यह हमेशा कानूनी या सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं होती है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के जौनसार से लगते हिमाचली गांव में हुये इस विवाह में विवाह करने वाले दोनों भाई में से एक सरकारी सेवा में है, जबकि दूसरा विदेश में नौकरी करता है । लड़की भी पढ़ी लिखी है। हिमाचल के सिरमौर जिले में हुई ये शादी तो चर्चा के केंद्र में है। लेकिन, इतिहास में अगर कुछ दशक पीछे तक जायें तो ऐसे बहुपति प्रथा उत्तराखंड के जौनसार के साथ ही उत्तराखंड के अलग अलग इलाकों, नेपाल और पश्चिमी तिब्बत में आम बात रही है। इतिहास की किताबों में इस प्रथा के बारे में बड़ी दिलचस्प बातें लिखी हुई है। आइये उन तथ्यों के बारे में जानते हैं, जो तथ्य हमें दो हजार साल पहले
यह घटना शिलाई उपमंडल के एक गांव की है जहां महाभारत कालीन बहुपति विवाह परंपरा आज भी प्रचलन में है।

उत्तराखंड के देहरादून में जौनसार-बावर क्षेत्र की जनजातियां। इनमें बडा भाई विवाह करता है जो अन्य भाईयों की भी पत्नी रहती है। उम्र में अत्यधिक अंतर की स्थिति में छोटा भाई अलग विवाह भी कर लेता है।

केरल के त्रावणकोर क्षेत्र की टोडा जनजातियों में पैतृक संपत्ति के बंटवारे को रोकने के लिए बहुपति प्रथा प्रचलित है। यहीं कुछ नायर जातियों में मातृ प्रधान परिवार होने के कारण बहुपति प्रथा है।

📍 मुख्य बातें:
• विवाह में स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों का पूर्ण पालन किया गया।
• “गंधर्व विवाह” की परंपरा कुल्लू व सिरमौर की लगघाटी व अन्य कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी देखी जाती है।
• यह विवाह सिर्फ प्रेम और पारिवारिक सहमति से होता है, इसमें समाज की सहमति कम मायने रखती है।

💬 क्या कहा लोगों ने?
• कुछ लोगों ने इसे संस्कृति की झलक बताया, तो कुछ ने इसे चर्चा का विषय बना दिया।
• सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हो रही है और इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

नोट फोटो स्रोत AI के द्वारा बनाई गई .

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