108 श्रीमद्भागवत कथा में श्रीकृष्ण की बाल लीला सुनकर मंत्रमुग्ध हुए श्रोता।।
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 27, अप्रैल। रामलीला मैदान उत्तरकाशी में अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन किया गया।
श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया। इस मौके पर वृंदावन के प्रख्यात कथावाचक डॉ. श्याम सुंदर पाराशर महाराज जी ने संगीतमय कथा वाचन कर भगवान की बाल लीलाओं के चरित्र का वर्णन किया। श्रोताओं से कहा कि लीला और क्रिया में अंतर होती है। अभिमान तथा सुखी रहने की इच्छा प्रक्रिया कहलाती है। इसे ना तो कर्तव्य का अभिमान है और ना ही सुखी रहने की इच्छा, बल्कि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यही लीला की, जिससे समस्त गोकुलवासी सुखी और संपन्न थे। उन्होंने कहा कि माखन चोरी करने का आशय मन की चोरी से है। कन्हैया ने भक्तों के मन की चोरी की। उन्होंने तमाम बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को वात्सल्य प्रेम में सराबोर कर दिया। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के जन्म लेने पर कंस उनकी मृत्यु के लिए राज्य की सबसे बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है। राक्षसी पूतना भेष बदलकर भगवान कृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है, परंतु भगवान उसका वध कर देते हैं। इसी प्रकार कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन कार्यक्रम की तैयारी करते हैं, परंतु भगवान कृष्ण उनको इंद्र की पूजा करने से मना कर देते हैं और गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहते हैं। यह बात सुनकर भगवान इंद्र नाराज हो जाते हैं और गोकुल को बहाने के लिए भारी वर्षा करते हैं। इसे देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देखकर भगवान कृष्ण कनिष्ठ अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी लोगों को उसके नीचे छिपा लेते हैं। भगवान द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को बचाने से इंद्र का घमंड चकनाचूर हो गया। मथुरा को कंस के आतंक से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया।
कथा के मध्य में व्यास पीठ पर विराजमान महाराज जी ने यह भी कहा कि परिश्रम छोड़कर रोगी मत बनो, भक्ति व मुस्कान छोड़कर तनावपूर्ण जीवन मत जियो। कृत्रिम हंसी भी छोड़ दे खुलकर हंसे व निरोगी रहना सीखो। इस अवसर पर अष्टादश महापुराण समिति के अध्यक्ष हरि सिंह राणा, महामंत्री रामगोपाल पैन्यूली, व्यवस्थापक घनानंद नौटियाल, संयोजक प्रेम सिंह पंवार, कोषाध्यक्ष जीतवर सिंह नेगी, यजमान के रूप में डॉ. एस डी सकलानी, अरविन्द कुडि़याल, डॉ. प्रेम पोखरियाल, गोविंद सिंह राणा, विनोद कंडियाल, राजेन्द्र सेमवाल, महादेव गगाडी़, कुमारी दिव्या फगवाड़ा, इंजिनियर जगबीर सिंह राणा, अधीक्षक अभियंता उत्तरकाशी महिपाल सिंह, सुदेश कुकरेती, प्रेम सिंह चौहान, रामकृष्ण नौटियाल, राजेन्द्र पंवार, विद्या दत्त नौटियाल, सम्पूर्णा नंद सेमवाल, प्रताप पोखरियाल, दिनेश पंवार, प्रकाश बिजल्वाण, सहित समिति के पदाधिकारी जगमोहन सिंह चौहान, नत्थी सिंह रावत, प्रथम सिंह वर्तवाल, प्रमोद सिंह कंडियाल, गजेन्द्र सिंह मटूड़ा, शम्भू भट्ट, सुरेश सेमवाल, राघवेन्द्र उनियाल, अजय प्रकाश बडोला, आदि उपस्थित थे नित्य डेव डोलियों के दर्शन प्राप्त करने के साथ सैकड़ों श्रद्धालुओं कथा का रसपान कर रहे हैं
इस दौरान शक्ति सेमवाल,चंद्र शेखर तिवारी, राजेन्द्र प्रसाद नौटियाल, रामचंद्र व्यास, शक्ति प्रसाद सेमवाल,लक्ष्मी प्रसाद चमोली, कृष्णानंद खंडूड़ी, ज्योति प्रसाद उनियाल, सुनील दत्त, माधव नौटियाल, आचार्य लोकेंद्र जी, ब्रह्मानंद उनियाल, सुरेश चंद्र भट्ट, सुरेश शास्त्री , डाक्टर द्वारीका नौटियाल, शिव प्रसाद, सुरेश सेमवाल आदि 108 भागवताचार्यों द्वारा प्रतिदिन भागवत का मूल पाठ किया जा रहा है।
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“उत्तरकाशी” घोषित हो तीर्थ नगरी, मांस- मदिरा की विक्री पर लगें रोक: डॉ श्याम सुंदर पारश।।
उत्तरकाशी। वृंदावन के प्रख्यात कथा वक्ता डॉ श्याम सुंदर पाराशर जी कहा कि “उत्तरकाशी” तीर्थ नगरी घोषित होनी चाहिए। यहां मांस और मदिरा की विक्री पर रोक लगनी चाहिए ।
शनिवार को सरूताल संदेश के संपादक से खाश मुलाकात में डॉ पारश महाराज ने बताया कि उत्तरकाशी मां गंगा का पावन तट है। ये दिव्य देवभूमि दिव्यताओं से भरी हुई है। और अनेक- अनेक सिद्ध कोटि के महापुरुष नित्य यहाँ, गुप्त रूप से निवास करते हैं।
उत्तरकाशी से ही गंगोत्री,यमुनोत्री ,केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम कि शुरुआत होती है।
ये देवभूमि है यहां किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होना चाहिए। मांस -मदिरा आदि ऐसे दिव्य देव भूमि में निषिद्ध होना चाहिए। ये तीर्थ भूमि होनी चाहिए। इसके लिए उत्तरकाशी वासियों को भी इस में बहुत सजग सावधान रहने की आवश्यकता है। मां गंगा जी अपने मायके से ही प्रदूषणों से मुक्त होनी चाहिए । उन्होंने इस दिव्य भूमि की दिव्यता को बनाए रखने की अपील की है।
उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी की महिमा स्कंद पुराण में बताई गई है। इसलिए यहां किसी प्रकार से प्रदूषण न होने दें तभी उत्तराखंड का देवभूमि नाम सार्थक होगा।