तिलाडी़ नरसंहार के लिए कौन- कौन दोषी हैं… ?
रवांई के विद्रोह कृषकों ने हिला दिये थे राजशाही की चूल्हे।
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मदन मोहन बिजल्वाण
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30, मई 1930 का दिन तिलाड़ी शहीद दिवस है।आज के ही दिन
तिलाडी़ के बर्बर गोलीकाण्ड एवं अमानवीय नरसंहार के लिए सीधे तौर पर दीवान चक्रधर जुयाल को दोषी माना जाता है। औजलियांवाला बाग से भी अधिक वीभत्स इस गोलीकाण्ड को दीवान चक्रधर जुयाल ने अंजाम दिया था। इसके लिए चक्रधर जुयाल तो दोषी हैं ही, इसके अलावा पर्दे के पीछे इस वीभत्स काण्ड को अंजाम देने के लिए कई षडयंत्रकारी छिपे हुए हैं जिन्हें बेनकाब करना आवश्यक है। इन षडयंत्रकारियों में तत्कालीन वनाधिकारी पद्मदत्त रतूडी, बडकोट के तत्कालीन परगना मजिस्ट्रेट सुरेन्द्र दत्त नौटियाल तथा रियासत के गुप्तचर विभाग के प्रभारी अम्वादत्त बहुगुणाएवं इनके मातहत कार्य करने वाले कारिन्दे प्रमुख थे। इन अधिकारियों द्वारा लगातार रंवाई के जनांदोलन के बारे में दीवान जुयाल को लगातार ग़लत सूचनाएं दी जाती रही, ताकि दीवान को यह विश्वास हो जाय रंवाई के ढंढक के पीछे राजद्रोह छिपा हुआ है, जबकि रंवाई की प्रजा केवल वनों पर अपने पुस्तैनी हक़ – हकूकों की बहाली की मांग कर रहे थे। दरअसल राज दरवार के अन्दर यह षडयंत्र चल रहा था कि दीवान चक्रधर जुयाल को गलतियां करने के लिए मजबूर कर उसे खलनायक साबित करके बदनाम किया जाय और महाराजा से उन्हें दीवान पद से हटाकर पद्मदत्त रतूडी़ को राज्य का दीवान बनाया जा सके।
तिलाडी़ काण्ड के बीज सन् 1920 से बोये जाने लगे थे। इस समय बरा- बेगार, पुलिस जुल्म एवं नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरी रियासत में आंदोलन चल रहे थे, आंदोलन के दमन में राज्य का काफ़ी धन ख़र्च हो गया था। इसी बीच राजा नरेन्द्र शाह को अपने नाम से नयां शहर बनाने की सनक पैदा हुई और उन्होंने ओडाथली नामक स्थान में नरेन्द्रनगर शहर का निर्माण करवाया, जिसपर क़रीब पैंसठ लाख रुपये ख़र्च हुए , टिहरी की छोटी आय वाले रियासत के लिए यह रक़म बहुत बड़ी थी। इस घाटे को पूरा करने के लिए रियासत द्वारा 1925 में तय किया गया कि वन बंदोबस्त नयें तरीक़े से करके वनों को बेचकर राज्य की आय बढा़ई जाय। नयें बंदोबस्त की शुरुआत रंवाई से की गई। मुनारे खिसकाकर गाँवों को नज़दीक लगाए जाने लगे। वनों से स्थानीय लोगों के पुश्तैनी हक़ – हकूक समाप्त किए जाने लगे। यहीं से में रंवाई में आंदोलन की शुरुआत हुईं , यह आंदोलन वनों पर अपने हक़ – हकूकों की बहाली का आंदोलन था जिसे रियासत के षडयंत्रकारी कारिन्दों ने राजद्रोह बताकर तिलाडी़ का बर्बर नरसँहार करवाया।
30 मई 1930 को रंवाई की जनता वनों पर अपने पुश्तैनी हक़ – हकूकों की बहाली के लिए आंदोलन की रणनीति तय करने हेतु तिलाडी़ के मैदान में बैठक कर रहे थे। दीवान चक्रधर जुयाल फ़ौज़ लेकर जब तिलाडी़ पंहुचे तो वहाँ हज़ारों की तादाद में लोगों को देखकर दंग रह गए। रंवाई में राजद्रोह के बारे में उनके कान षड़यंत्रकारियों द्वारा पहले से ही भरे जा रहे थे। तिलाडी़ में एकसाथ इतनी बड़ी भीड़ देखकर उन्हें राजद्रोह का पूरा यक़ीन हो गया था। दीवान ने फ़ौज़ को तिलाडी़ का मैदान तीन ओर से घेरने का आदेश दिया, चौथी और यमुना नदी थी। दीवान ने फ़ौज़ को घेरा छोटा करने एवं बिना चेतावनी के गोली चलाने के आदेश दिए। आतताई फ़ौज़ ने गोली बरसानी शुरू कर दी। तिलाडी़ का मैदान लाशों व घायलों से पट गया। इसके बाद फ़ौज़ कई महीनों तक गाँवों में पड़ी रही और घरों से निकाल – निकाल कर निर्दोष लोगों की हत्यायें करती रही। एक हज़ार किसानों को गिरफ़्तार कर जेलों में ठूँस दिया गया और उनकी सम्पति कुर्क कर ली गई।
तिलाडी़ का यह गोलीकांड सामंती शासन से मुक्ति का शंखनाद था।इस बर्बर गोलीकांड से रियासत की जनता आक्रोशित हो गई और पूरी रियासत में विद्रोह होना लगा। तिलाडी़ आज़ाद पंचायत की भांति सकलाना, कडा़कोट आदि स्थानों पर भी आज़ाद पंचायत का गठन हुआ और सामंती शासन से मुक्ति के ख़िलाफ़ निर्णयाक आंदोलन हुआ जो सामंती सत्ता के अन्त के बाद ही समाप्त हुआ।
तिलाडी़ के वीर शहीदों को शत शत नमन।