उत्तरकाशी। उत्तराखंड की धर्म नगरी हरिद्वार लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रत्याशी चयन को लेकर मचे घमासान के बीच निर्दल विधायक उमेश कुमार की कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात ने सियासी समीकरण को गरमा दिया है।
मंगलवार को खानपुर विधायक उमेश कुमार ने नई दिल्ली में कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी से मुलाकात की। लगभग एक घंटे की इस मुलाकात में किस विषय पर चर्चा हुई तो यह तो साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन इससे प्रदेश की राजनीति में खासकर हरिद्वार को लेकर उबाल है। चर्चा है कि उमेश कुमार हरिद्वार सीट से कांग्रेस के टिकट पर हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने वर्ष 2022 में निर्दलीय प्रत्याशी के
हरिद्वार लोकसभा सीट पर गरमाया सियासी माहौल
तौर पर चुनाव लड़ा था और भाजपा के तत्कालीन विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन
को हराया था। खानपुर समेत आसपास की सीट पर वह अच्छी पकड़ रखते हैं। उमेश अपनी पत्नी को बसपा के टिकट
पर हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे। बसपा में उनकी बात नहीं बनी। ऐसे में उत्तराखंड के कांग्रेस प्रभारी से उनकी मुलाकात का इशारा यही है कि वह अपनी पत्नी के लिए या खुद के लिए लोकसभा का टिकट चाहते हैं। हरिद्वार में कांग्रेस भी फंसी हुई है। क्योंकि हरीश रावत चुनाव लड़ने से मना कर दिया है और हरक सिंह रावत पर पार्टी की प्राथमिकता में नहीं हैं।सूत्रों की माने तो उमेश कुमार ने एक शर्त भी रखी है कि अगर पार्टी उन्हें हरिद्वार लोकसभा सीट से टिकट देती है तो वो अपने तमाम समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। सूत्रों की मानें तो वो अपनी पत्नी को हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाना चाहते हैं। फिलहाल कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें अभी तक कोई जवाब तो नहीं दिया है, लेकिन हरिद्वार सीट पर पार्टी ने सस्पेंस बरकरार रखा है.
सरूताल संदेश संपादक से बातचीत करते हुए उमेश कुमार ने बताया कि उनकी दिल्ली में मीटिंग हुई है लेकिन अभी वो इस बारे में ज्यादा कुछ भी स्पष्ट नहीं कह सकते।उमेश कुमार ने बताया है कि जल्द ही कुछ निर्णय लिया जाएगा।
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हरिद्वार-पौड़ी सीट पर जातीय संतुलन साधने के चक्कर में बीजेपी में फंसा पेंच।।
क्या केंद्रीय नेतृत्व इन सीटों पर नया प्रयोग करना चाहता..?
उत्तरकाशी । बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से दश दिन पहले राज्य की तीन सीटों की के प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है । लेकिन पौड़ी और हरिद्वार पर ठिठक गई है। पैनल में कई नामचीन दावेदार शामिल होने के बाद भी पार्टी अंतिम निर्णय नहीं ले पा रही है। इसके पीछे जातिगत संतुलन और नया प्रयोग करने संबंधी केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा ने पार्टी के कदम रोक दिए है।
गौरतलब है कि टिहरी, नैनीताल और अल्मोड़ा सीट पर दस दिन पूर्व ही प्रत्याशियों की घोषणा कर भाजपा इस लिहाज से काफी आगे निकल चुकी थी। उम्मीद जताई जा रही थी कि बहुत जल्द हरिद्वार और पौड़ी सीट के प्रत्याशी फाइनल कर दिए जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सवाल यह है कि काफी तेज गति से चली प्रत्याशी चयन की रेल दो सीटों पर क्यों रुक गई। जबकि इन सीटों पर न तो दावेदारों की कोई कमी है और न हीं संगठन के स्तर पर कोई दुविधा है।
पौड़ी सीट पर अनिल बलूनी में और त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ ही हाल ही में कांग्रेस से आए मनीष खंडूड़ी भी अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं। मौजूदा सांसद तीरथ सिंह रावत को भी कम नहीं आंका जा सकता। इसी तरह हरिद्वार सीट से मौजूदा सांसद रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह । रावत और इसके अतिरिक्त मदन कौशिक या फिर यतींद्रानंद गिरी में से किसी के नाम पर दांव खेला जा सकता है। इसके बावजूद यदि
दावेदारों की अधिक संख्या और जातीय संतुलन साधने के चक्कर में फंसा पेंच
भाजपा ने अब प्रत्याशी का नाम चयन ना करने के इसके गहरे सियासी अर्थ है। संदेश यह जा
रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व इन सीटों पर नया प्रयोग करना चाहता है। लेकिन इस नए प्रयोग से पहले जातिगत समीकरण का ध्यान रखना जरूरी है। पौड़ी में जहां पंडित-ठाकुर समीकरण काम करेगा वहीं हरिद्वार में पर्वतीय मैदानी समीकरण का ध्यान रखना जरूरी। इसके अतिरिक्त ओबीसी और एससी फैक्टर भी प्रभावी है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र को यदि पौड़ी से उतारा जाता है तो हरिद्वार में किसी पंडित को मैदान में उतारना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो पर्वतीय सीटों पर इसका असर होगा। लेकिन, हरिद्वार सीट पर पंडित या ठाकुर को मैदान में उतार देने से काम नहीं चलेगा। ओबीसी और एससी मतदाता का ध्यान भी रखना होगा। पर्वतीय क्षेत्र के समीकरण को यदि हरिद्वार में आजमाया जाता है तो उलटा असर होगा। यानी हरिद्वार के कारण पौड़ी सीट भी
फंसी हुई है।
कांग्रेस प्रभारी शैलजा की खानपुर विधायक से हुई मुलाकात , हरिद्वार में गरमाया सियासी समीकरण


