अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा में हुआ श्रीकृष्ण जन्म एवं नंदोत्सव का वर्णन
अहंकार मनुष्य की बुद्धि हर लेता : डॉ श्याम सुंदर पाराशर जी।।
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 24, अप्रैल। रामलीला मैदान उत्तरकाशी में सात दिवसीय अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है । कथा के चौथे दिन शुक्रवार को
श्रीकृष्ण जन्म की कथा एवं नंदोत्सव का वर्णन करते हुए डॉ श्याम सुंदर पाराश महाराज ने बताया कि कंस की कारागार में वासुदेव- देवकी के भादो मास की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उनका लालन-पालन नंदबाबा के घर में हुआ था। इसलिए नंदगांव में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया गया था। श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध करके पृथ्वी को अत्याचार से मुक्त किया और अपने माता-पिता को कारागार से छुड़वाया।
श्रीकृष्ण जन्म के प्रसंग शुरू होते ही पांडाल में मौजूद श्रद्धालु ” नंद के घर आनंद भया जय कन्हैया लाल की भजनों के साथ झूम उठे।
वहीं श्रद्धालुओं ने आतिशबाजी कर मक्खन मिश्री के प्रसाद का भोग लगाकर वितरित किया। वृंदावन से आए भागवत मर्मज्ञ डॉ. श्यामसुंदर पाराशर महाराज
ने कहा कि जीवन में जब भी भागवत नाम सुनने का अवसर प्राप्त हो, उससे विमुख नहीं होना चाहिए। भागवत महापुराण के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हुए बताया कि जब जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब तब परमात्मा अवतार धारण करके धरती पर धर्म की स्थापना करते हैं। उन्होंने कहा कि द्वापर में जब कंस के अत्याचार बढ़े तो श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर मुक्ति दिलाई।
इस दौरान कथा वक्ता डॉ श्याम सुंदर पाराशर जी बताया कि अहंकार मनुष्य की बुद्धि हर लेता है। इस लिए
शास्त्रों में अहंकार को एक रोग बताया गया है। व्यक्ति स्वयं को ही श्रेष्ठ समझने की भूल कर बैठता है। इसका परिणाम उसे भोगना भी पड़ता है। अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप की कथा सुनाकर कहा कि हिरण्यकश्यप का कथा जीवन में बड़ी सीख देती है।
नरसिंह रूप में जब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया, उस समय वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, ना दिन था और ना रात, भगवान नरसिंह ना पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु. नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को ना धरती पर मारा ना ही आकाश में बल्कि अपनी जांघों पर मारा. मारते हुए शस्त्र-अस्त्र नहीं बल्कि अपने नाखूनों का इस्तेमाल किया।
इससे पूर्व उन्होंने सगर पुत्रों के उद्धार के लिए मां गंगा के अवतरण की कथा भी सुनाते हुए कहा कि गंगा में बढ़ता प्रदूषण विडम्बना है। गंगा तट पर रहने वाले लोगों का परम कर्तव्य है कि सुर सरिता मां को गंगा को सदैव निर्मल व पवित्र बनायें रखें।
इस अवसर पर अष्टादश महापुराण समिति के अध्यक्ष हरि सिंह राणा, महामंत्री रामगोपाल पैन्यूली, व्यवस्थापक घनानंद नौटियाल, संयोजक प्रेम सिंह पंवार, कोषाध्यक्ष जीतवर सिंह नेगी, आंनद प्रकाश भट्ट जगमोहन सिंह चौहान, नत्थी सिंह रावत, प्रथम सिंह वर्तवाल, प्रमोद सिंह कंडियाल, राजेन्द्र सिंह रावत, शंभू प्रसाद, चंद्र शेखर, विश्वनाथ मंदिर के महंत जयेंद्र पुरी, डॉ शंभू प्रसाद नौटियाल एवं अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत महापुराण में 108 भागवताचार्य मूल पारायण कर रहे हैं।