पर्यटकों को भा रही गरतांग गली, 23 दिनों में चार लाख तीस हजार का राजस्व मिला।।
रोमांच का सफर: आकर्षण का केंद्र बनी ऐतिहासिक गरतांग गली, 23 दिन में 2099 पर्यटकों ने किया दीदार।
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 27, अप्रैल। समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री नेशनल पार्क में स्थित गरतांग गली इन दिनों पयर्टकों से गुलजार है। यह गली गंगोत्री नेशनल पार्क के लिए कमाई का जरिया भी बन गई है। बीते 23 दिनों में 2099 पयर्टकों ने गरतांग के दीदार हुऐ है इससे पार्क प्रशासन को चार लाख तीस हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है।
उक्त जानकारी देते हुए गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक रंगनाथ पांडेय ने बताया कि इस बार पार्क के गेट पर्यटकों के लिए 1 अप्रैल को खोल दिया गया था।
हालांकि, गोमुख तपोवन ट्रैक क्षतिग्रस्त होने, मार्ग में बड़े-बड़े हिमखंड होने और खराब मौसम के चलते फिलहाल इस ट्रैक पर पर्यटकों व पर्वतारोहियों की आवाजाही शुरू नहीं हुई ।
उन्होंने बताया कि 23 अप्रैल तक कुल 2099 पर्यटकों ने यहां के दिलदार हुए हैं इन में 17 विदेशी भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा के निकट स्थित गरतांग गली लगभग 150 साल पुरानी है। यह गली भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक रिश्तों की गवाह है। खड़ी चट्टान को काटकर तैयार की गई यह गली एक प्रकार से लड़की का पुल है। 1962 के भारत-चीन युद्ध बाद इसे बंद कर दिया गया था। वर्ष 2021 में ही 64 लाख रुपये की लागत से इसका जीर्णोद्धार कर इसे खोला गया था। रोमांचक पर्यटन के शौकीनों के लिए ये पसंदीदा स्थल है।
करीब 2390 वर्ग किमोमीटर क्षेत्र में फैला गंगोत्री नेशनल पार्क दुर्लभ वन्य जीवों स्नो लेपर्ड, भरल, काला भालू ,भूरा भालू , हिमालय थार, कस्तूरी मृग आदि दुर्लभ वन्यजीव भी निवास करते हैं।
गंगोत्री नेशनल पार्क का ताला खुलने से अब पर्यटक भारत तिब्बत के बीच व्यापारिक रिश्तों की गवाह गरतांग गली में जा सकेंगे। भैरवघाटी के समीप खड़ी चट्टान को काटकर तैयार यह रास्ता स्काई वॉक जैसा अनुभव प्रदान करता है।
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खूबसूरती की अद्भुत मिसाल है ऐतिहासिक गरतांग गली।।
उत्तरकाशी।समुद्र तल से लगभग 11 हजार फीट की ऊंचाई पर
भैरवघाटी के निकट ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढिय़ों का दीदार करना बहुत ही रोमांचक है। यहां गंगोत्री और भैरव घाटी से पहले है इस का तीन किलोमीटर का ट्रैक काफी खूबसूरती ऐसी है, जैसे जन्नत में जा रहे हों। उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में स्थित यह वही लकड़ी का पुल है, जो कभी तिब्बत ट्रैक का हिस्सा हुआ करता था। इसका निर्माण पेशावर से आए पठानों ने 150 साल पहले किया था, ताकि भारत-तिब्बत व्यापार को एक नया आयाम मिल सके, लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि इसे 1962 की भारत-चीन लड़ाई के बाद बंद करना पड़ा।
आजादी से पहले तिब्बत के साथ व्यापार के लिए नेलांग वैली होते हुए यह तिब्बत ट्रैक बनाया गया था और गरतांग गली का यह ट्रैक भैरवघाटी के नजदीक खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर तैयार किया गया था था। इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंचाए जाते थे।
इस पुल के बंद हो जाने से लोगों की आवाजाही बंद हो गई थी। इस पुल से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। कई यात्रियों का सपना रहता है कि वे इस जगह की खूबसूरती को देखें।
यूं तो नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसकी वजह से सदियों से भारत-तिब्बत व्यापार के गवाह रहे इस पुल को 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। यहां स्थित गांव के लोगों को हर्षिल के नजदीक बगोरी गांव में बसा दिया गया था। यहां के ग्रामीणों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक बार पूजा अर्चना के लिए इजाजत दी जाती रही है, पर पर्यटकों के लिए यह जगह पूरी तरह से बंद कर दी गई थी।
वर्ष 2015 में देश भर के पर्यटकों को नेलांग घाटी तक जाने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से इजाजत दी गई थी, जिसका सकारात्मक परिणाम रहा। पर्यटन को इस क्षेत्र में काफी बढ़ावा मिला है। वर्ष 2021 में ही गरतांग गली का 64 लाख रुपये की लागत से जीर्णोद्धार कर इसे खोला गया था। रोमांचक पर्यटन के शौकीनों के लिए ये पसंदीदा स्थल है।
इस जगह के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए गरतांग गली की सीढिय़ों का पुनर्निर्माण कार्य भी शुरू किया गया, जिसे इसी साल जुलाई माह में पूरा किया गया है। सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन को गति मिलेगी। गरतांग गली की लगभग 150 मीटर लंबी सीढिय़ां अब अपने एक नए रंग में नजर आने लगी हैं और लोग इस जगह की खूबसूरती का दीदार करने लगे हैं। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी ये सीढिय़ां इंजीनियरिंग का नायाब नमूना हैं।
गरतांग गली की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यह भैरव घाटी से नेलांग को जोडऩे वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा की घाटी में मौजूद है। नेलांग घाटी जिसे उत्तराखंड का लद्दाख भी कहा जाता है, चीन सीमा से लगी है। इसी सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं। इस जगह पर यदि आप जाना चाहते हैं, तो पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा और फिर हरसिल होते हुए भैरवघाटी की यात्रा करनी होगी।