–कुछ ने खुलकर तो कुछ ने भितरघात कर रचा भाजपा प्रत्याशी की हार का कुचक्र
-संगठन के कुछ पदाधिकारियों पर भी भितरघात के आरोप।।
उत्तरकाशी। नगर पालिका परिषद बाडाहाट में भाजपा के अध्यक्ष प्रत्याशी किशोर भट्ट शहर वासियों से अधिक अपनों से हार गए। खासकर पार्टी के मौजूदा विधायक से लेकर पूर्व विधायक और चार पूर्व पालिकाध्यक्ष भाजपा में है पार्टी की समर्पित कार्यकर्ताओं के गले में बात नहीं उतर रही कि आखिर इन बड़े़ नेताओं की फौज के बावजूद भाजपा प्रत्याशी एक निर्दलीय से चुनाव कैसे हार गए। स्थिति यह रही कि भाजपा के दिग्गज अपने वार्डों में अध्यक्ष तो दूर पार्षदों को भी बढ़त नहीं दिला पाए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां भारतीय जनता पार्टी के अंदर भितरघात का किस हद तक खेल खेला गया होगा ?
शनिवार को बाडाहाट नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष पद के चुनाव परिणाम ने उत्तरकाशी में भाजपा दिग्गजों के साथ ही संगठन की हकीकत की पोल खोल दी। यहां अध्यक्ष पद पर पार्टी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के करीबी किशोर भट्ट को मैदान में उतारा था। लेकिन नामांकन के दिन से ही यहां बड़े दिग्गजों पर भितरघात के आरोप लगने शुरू हो गए थे। खासकर बड़े नेता जहां पार्टी प्रत्याशी के साथ खड़े दिखे, वहीं, उनके सिपाह-सलाहकार व तीन सालों से सत्ता की मलाई चाटने दर्जनों मंजीले नेता निर्दलीय प्रत्याशी के लिए काम करते रहे। यही नहीं पार्टी के दिग्गज नेता, यहां तक विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व राज्यमंत्री, दो पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष समेत अन्य नेता बूथ तक नहीं जीता पाए। इसके पीछे साफ कारण रहा कि दिग्गज पार्टी प्रत्याशी के साथ या तो बाहरी मन से तो खड़े़ रहे, या इनका जन आधार निर्दलीय प्रत्याशी से भी कम हो गया है। इसमें कुछ के खास समर्थक तो निर्दलीय के साथ खुलेआम प्रचार करते रहे और कुछ ने अंदरखाने काम कर भाजपा प्रत्याशी को हराने में कोई कमी नहीं छोड़ी। यही नहीं पार्टी संगठन से जुड़े कुछ नेताओं ने भी भितरघात और पार्टी प्रत्याशी को हराने का षड्यंत्र रचा। इसमें पार्टी प्रत्याशी के टिकट के बाद जिस तरह से पार्षद प्रत्याशियों के टिकट बांटे गए, वह भी हार के बड़े कारण बने। यहां पार्टी से 11 पार्षदों में से मात्र 2 ने जीत दर्ज कराई। जबकि निर्दलीय जीतने वाले पार्षद भी पार्टी पृष्ठ भूमि से जुड़े थे और अच्छे मर्जन से चुनाव जीत गए। बहरहाल, बाडाहाट नगर पालिका सीट पर न केवल पार्टी प्रत्याशी की हार हुई, बल्कि बड़े नेताओं की साख पर सवाल खड़े हुए हैं। इससे भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में दिग्गजों की फौज के बावजूद पार्टी प्रत्याशी की हार किसी के गले नहीं उतर रही है।
निष्ठावान कार्यकर्ताओं की मनसा है जब तक ऐसे कार्यकताओं एवं पदाधिकारियों को पार्टी चिन्हित कर बाहर का रास्ता नहीं दिखाती तब तब ये सब होता रहेगा और इनके हौसले पहले की अपेक्षा अधिक बुलंद होंगे जिससे आने वाले पंचायत चुनाव व 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुक़सान पहुंचायेंगे। जिससे पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं अपने आप को ठगासा महसूस करते रहेंगे।