उत्तरकाशी: पंचकोषी यात्रा करने पहुंचे हजारों भक्त ।।

By sarutalsandesh.com Apr 6, 2024

शिव, वाराणसी छोड़ कलयुग में ” उत्तरकाशी” देंगे भक्तों को दर्शन।।

उत्तरकाशी: पंचकोषी यात्रा करने पहुंचे हजारों भक्त ।।

चिरंजीव सेमवाल

उत्तरकाशी 06, अप्रैल। देवभूमि उत्तराखण्ड अपने में यूं तो कई प्राकृतिक छटाएं बिखेरे है परंतु धार्मिक मान्यता भी यहां के मनुष्यों के भीतर कण-कण में फैला है। यही वजह है कि उत्तराखंड में प्रत्येक माह कहीं न कहीं और किसी ने किसी देवता के नाम पर त्यौहार मानाए जाते हैं।
इन्हीं में से सीमान्त जनपद उत्तरकाशी में प्रत्येक वर्ष ‘पंचकोषी यात्रा’ हर्षोल्लास से मनाई जाती है जहां हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी करने पहुंचते हैं। इस वर्ष यह ‘यात्रा’ 6 अप्रैल हुई। धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप यात्रा का शुभारंभ चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी के शुभ मुहुर्त पर हुई। इस ‘पंचकोषी यात्रा’ का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है कि कलयुग में शिव वाराणसी छोड़कर उत्तरकाशी (सौम्यकाशी) में भक्तों को दर्शन देंगे और पूर्व काशी के समान ही है। इस लिए वाराणसी के भांति उत्तरकाशी में भी पंचकोसी परिक्रमा करते हैं।
पुराणों में वरूणावत के बगैर काशी को महत्वहीन बताया गया है। केदारखण्ड के 96 वें अध्याय में वरूणावत व काशी के महत्व को इस श्लोक से अलंकृत किया गया है कि
‘सौम्यकाशी ति विख्यात गिरौ वरूणावत’ अस्सी च वरूणा चैव द्वे नद्यौ पुण्य गोचरे, यत्र बह्मा च विष्णुश्च महेश्स्चतिते त्रयः नित्य सनिहिता यत्र मुक्ति क्षेत्र तथोत्तर’।।
यानी वरूणावत क्षेत्र काशी के नाम से विख्यात है। यहां अस्सी व वरूणा ये दो पवित्र नदियां मौजूद हैं और इस क्षेत्र में नित्य ब्रह्मा, विष्णु व महादेव का वास होता है। भागीरथी व वरूणा नदी के’ संगम बड़ेथी से शुरू होने वाली यह तकरीबन 15 किमी यात्रा भागीरथी व अस्सी के संगम पर
गंगोरी में समाप्त होती है। यात्रा के दौरान दिखने वाले सुंदर प्राकृतिक दृश्य व वरूणा पर्वत पर स्थित देवी देवताओं के मंदिरों को लेकर अलग-अलग किवंदती है। बड़ेथी में स्थित वरूणेश्वर महादेव की पूजा के बाद अखण्डेश्वर महादेव की तपस्थली पर दान व तप का
पुण्य दायक है। साल्ड गांव में भगवान वैकण्ठ पर दान व तप का पुण्य दायक है। साल्ड गांव में भगवान वैकुण्ठ जगन्नाथ के दर्शन ‘होते हैं। कहते हैं कि यहां भंगवान विष्णु ने हयागिरी राक्षस का वधं किया और उसके उपरान्त शिवाज्ञा से यही स्थापित हो गए।
वरूणावत पर्वत पर स्थित 33 कोटी, देवताओं में मां अष्ठ भुजा
ज्वाला के दिव्य दर्शन तो होते हैं साथ ही आठ भुजाओं युक्त ज्वाला देवी. की पूजा शत्रुनाशक बताई गई है। ज्ञाणजा गांव में ज्ञानेश्वर महादेव को लेकर किवदंती है कि यहां महर्षि व्यास ने शिव पुत्र गणेश से 18 पुराण लिखवाए और यही व्यास कुण्ड के पानी को गंगा के समान पवित्र मानते हैं। ज्ञानेश्वर के बाद शिखरेश्वर महादेव की ऊंचाई से हैं यात्रा में देखने से ऐसा लगता है कि जैसे दुनिया का सूक्ष्म रूप आंखों के समाने आ गया है और विमलेश्वर महादेव को लेकर यहां क्षेत्र में धार्मिक मान्यता है कि यहां कभी झाड़ी में एक गाय नित्य दूध डाला करती थी। किसी ग्वाले ने इस झाड़ी पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर डाला, इस प्रहार के साथ एक जोर से चित्कार निकली

और महादेव प्रकट हो गए। यहां स्थित शिवलिंग पर लगाए ग्वाले की चोट का निशान विद्यमान है। ग्राम संग्राली में भग्याल देवता, कण्डार भैरव के दर्शन से श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती है। पूर्व की भांति इस वर्ष तो श्रद्धालुओं का तांता दुगुना बताया जा रहा था। वरूणावत की यह पुण्य यात्रा गंगोरी में अस्सी और भागीरथ्री के संगम पर समाप्त होती है।

राज्य के सुदूर उत्तर में बसी शिव नगरी उत्तरकाशी व उत्तर प्रदेश के वाराणसी के अलावा यह यात्रा अन्य किसी भी स्थान पर नहीं होती है। पूर्व काशी में सरकार का पूरा सहयोग रहता है किन्तु उत्तरकाशी में प्रत्येक वर्ष होने वाली इस यात्रा हेतु सरकार का कोई खास अपेक्षित सहयोग नहीं है होता।
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आयुर्वेद विभाग में लगाए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर।।

उत्तरकाशी के साल्ड स्थिति जगन्नाथ मंदिर परिसर में आयुर्वेद विभाग की ओर से निःशुल्क स्वास्थ्य चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। इस दौरान डा. रतन मणि भट्ट ने बताया कि यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे जरूरत मंद निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं व दवा वितरण किया गया है।
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जगन्नाथ मंदिर समिति ने किया फलहार की व्यवस्था।।

साल्ड में भगवान जगन्नाथ मंदिर परिसर में समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए बुरांस का जूस और फलहार की व्यवस्था कर रखी थी। इस दौरान पूजारी पंडित अनिल प्रकाश सेमवाल, वृजमोहन सेमवाल समिति के अध्यक्ष कुलदीप नेगी, सचिव मानेंद्र राणा, जयवीर राणा, सहित महिलाओं ने आदि मौजूद रहे है।

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