माघ मेला में सरनौल के पांडव की धूम, जोगटा नृत्य देखने उमड़ा जनसैलाब।।
जुएं में सबकुछ हारने के बाद पांडवों के 13 वर्ष वनवास का हुआ सुंदर चित्रण।।
चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी: माघ मेला बाराहाट कू थौलू उत्तरकाशी पंडाल में सरनौल के पांडव नृत्य में महाभारत कालीन पारंपरिक संस्कृति दिखी।
रवाईं घाटी के सीमांत सरनौल क्षेत्र है जिससे पांडव गांव के नाम से जाना जाता है।
इस गांव में महाभारत कालीन पारंपरिक संस्कृति आज भी जीवित है। माघ मेले में पांडव पश्वाओं की ओर से नृत्य के दौरान अर्जुन व भीम का घोड़ी नृत्य , जोगटा नेतृत्व आकर्षण का केंद्र रहा।
कहते हैं कि पांडवों ने अज्ञातवास काल में युधिष्ठिर ने लाखामंडल स्थित लाक्षेश्वर मंदिर के प्रांगण में जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वह आज भी विद्यमान है।पांडव के जोगटा बनने के पीछे महाभारत में उल्लेख है कि सौ कौरव भाइयों से जुएं में सबकुछ हारने के बाद पांडवों को 13 वर्ष वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास बिताना पड़ा था। अज्ञातवास की शर्त थी कि यदि पांडव इस दौरान पहचान लिए गए तो उन्हें फिर से 13 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास काटना पड़ेगा। इस लिए पांडव ने वनवास और अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए ये जोगटा रूप धारण कि′या था। इस नृत्य में पांडव पश्वा अरविंद राणा, सबल सिंह, शीशपाल चौहान,रूकम सिंह चौहान ,
कविता, सुशीला, शीशमा देवी , मुंशी दास , बालकृष्ण, प्रवीन राणा , चिरंजीव सेमवाल, प्रदीप गैरोला, अनमोल राणा आदि मौजूद रहे है।