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उत्तरकाशी में सात दिवसीय 108 श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का हुआ शुभारंभ

By sarutalsandesh.com Apr 23, 2024

भागवत कथा सुनने से मिट जाते जीवन के सारे पाप।।

बिनु सत्संग विवेक न होई  : डॉ. श्याम सुंदर पाराशर।।

चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी 23, अप्रैल।  उत्तरकाशी में सात दिवसीय 108 श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का शुभारंभ हो गया। इस दौरान  प्रख्यात कथा वक्ता डॉ श्याम सुंदर पाराशर जी ने कहा कि  उत्तराखंड देव भूमि  है। इस दौरान   उत्तरकाशी का महत्व बताते हुए कहा कि उत्तरकाशी तो भगवान शंकर का दूसरा स्थान है वाराणसी पूर्व की काशी है ,उत्तरकाशी उत्तर की काशी है आप सब लोग बड़े  भाग्यशाली हैं जो गंगा जी के तट पर उत्तरकाशी में रहते हैं।  उन्होंने कहा कि कथा स्थल पर सैकड़ों देव डोलियों के एक साथ दर्शन करने का सौभाग्य मिला है।
कथा वक्ता डॉ पारशर ने श्रीमद्भागवत महापुराण सुना ते हुये कहा कि तुलसी दास जी ने कहा कि
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।

“भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन,
सत्सड़्गमं चलभते पुरुषो यदावै।
अज्ञानहेतुकृतमोह मदान्धकार​,
नाशं बिधाय हिनतदोदयते विवेक​:”॥

प्रख्यात कथा कार डॉ. पाराशर जी ने कहा कि जब मानव का
जन्म-जन्मांतर एवं युग-युगांतर में जब पुण्य का उदय होता है तब प्राणी को सतसंग सुनने का अवसर मिलता है। और सतसंग से ही विवेक मिलता है।
सतसंग के द्वारा सारी अज्ञानता मिट जाती है। मोह का अंधकार नष्ट होकर जीवन में विवेक रुप का प्रकाश प्रकट हो जाता है।

उत्तरकाशी  रामलीला मैदान में  श्रीमद्भागवत कथा एक अमर कथा है। इसे सुनने से पापी भी पाप मुक्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानवजाति तक पहुंचाता रहा है।
श्रीमद्भागवत महापुराण का बखान करते हुए बताया
कि सबसे पहले सुखदेव मुनि ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई थी, उन्हें सात दिनों के अंदर तक्षक के दंश से मृत्यु का श्राप मिला था। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा अमृत पान करने से संपूर्ण पापों का नाश होता है।
इससे पूर्व उन्होंने हनुमान जयंती पर हनुमान जी कथा सुनाई उन्होंने कहा कि यदि कथा के रसीक हनुमान जी से सीखना चाहिए।

“यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकंजलम्
भाष्पवारिपरिपूर णालोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्”॥

जहाँ-जहाँ प्रभु रघुनाथ जी का कीर्तन होता है, वहाँ-वहाँ भगवान मारुति हाथ जोड़े हुए नतमस्तक, नेत्रों में प्रेमाश्रु भरे हुए विराजमान रहते हैं। राक्षसों के नाशक श्री मारुति को मैं नमस्कार करता हूँ।

इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष हरि सिंह राणा, महासचिव रामगोपाल पैन्यूली, व्यवस्थापक घनानंद नौटियाल, संयोजक प्रेम सिंह पंवार, कोषाध्यक्ष जीतवर सिंह नेगी, सचिव नत्थी सिंह रावत,  दशरथ प्रसाद भट्ट, रामकृष्ण नौटियाल, शंभू प्रसाद नौटियाल, राजेन्द्र रावत, जगमोहन चौहान,प्रथम सिंह बर्तवाल,आनन्द प्रकाश भट्ट,
वरिष्ठ उपाध्यक्ष
श्रीमती प्रभावती गौड़,  जयेंदी राणा, गीता गैरोला, कल्पना ठाकुर परमार, चंद्रशेखर भट्ट,अजय बडोला, अर्चना रतूड़ी, ममता मिश्रा, ऊषा जोशी एवं
यजमान के रूप में डॉ. एस डी सकलानी, अरविन्द कुडि़याल, डॉ. प्रेम पोखरियाल, गोविंद सिंह राणा, विनोद कंडियाल, राजेन्द्र सेमवाल, महादेव गगाडी़, कुमारी दिव्या फगवाड़ा, दिनेश गौड़, इंजिनियर जगबीर सिंह राणा, भूदेव कुडि़याल, सुदेश कुकरेती, प्रेम सिंह चौहान, रामकृष्ण नौटियाल, राजेन्द्र पंवार, विद्या दत्त नौटियाल, सम्पूर्णा नंद सेमवाल सहित, भागवताचार्य डॉ.  माधव शास्त्री,  शक्ति प्रसाद सेमवाल, डॉ. द्वारिका प्रसाद नौटियाल,  दयानंद डबराल, महेश उनियाल, यजमान अरविंद कुडि़याल, दिनेश गौड़ समिति के पदाधिकारी एवं यज्ञ अनुष्ठान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तमाम लोग व मातृशक्ति उपस्थित थे।

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